Tuesday, 26 May 2015

Raag Bhairav

राग भैरव 
इस राग की उतपत्ति भैरव ठाट से हुई है।  राग भैरव में ऋषभ और धैवत कोमल तथा  सभी स्वर शुद्ध लगते है।  यह प्रातः  सन्धि-प्रकाश राग है। रे तथा ध  के विशेष स्वर है। इन स्वरों का बार- बार आंदोलन किया जाता है। 

आरोह :- सा रे ग म प  नि सा. 
अवरोह :- सा.  नि  प म ग रे सा। 
वादी :- ध 
सम्वादी :- रे 
गायन समय :-  दिन का प्रथम प्रहर। 
पकड़ :-  प , ग म रे  रे  सा। 

आलाप :-

Raag Bilaaval

राग बिलावल 


राग बिलावल में सभी स्वर शुद्ध लगते है। इस राग में गांधार तथा निषाद स्वरों  प्रयोग वक्र होता है।  जैसे - ' ग म रे ग प ' या    ' ग म रे  सा ' तथा  ' नि ध सा. '। जब इस  राग में कोमल निषाद का प्रयोग धैवत स्वर के सहारे होता है जैसे - ' सा नि ध नि प ' अथवा ' सा. नि ध नि ध प ' , तब यह राग अल्हैया- बिलावल कहलाता है। राग बिलावल की अपेक्षा अल्हैया - बिलावल अधिक प्रचलित है। इसका गायन समय दिन का प्रथम प्रहर है।

आरोह :- सा रे ग म प ध  नि सा.
अवरोह :- सा.  नि ध प म ग रे सा।
वादी स्वर :-
संवादी स्वर :-
गायन समय :-  दिन का प्रथम प्रहर।
पकड़ :- ग, म रे ग प , ध , नि सा. । 

आलाप :- 
1 सा रे सा , ग , म रे सा , .नि , .ध .प .ध  .नि सा, ग , रे ग प , म ग , म रे सा।
२ सा , ग , रे ग , प , म ग रे ग , प , ध प म ग , म रे ग प , म ग , रे सा।
३ सा रे ग , म रे सा , ग , ग प ध  प , म ग , रे ग प , ध नि  सा।


छोटा ख़याल :-

बेगि बरस दो कृष्ण मुरारी ,
गोवर्धन गिरिधारी।
मोर मुकुट छवि वंशी धुन पर,
मोहत ब्रज के सब नर नारी।